चीज़ें
सारी अभी भी हैं
बस
जगहें बदल गयी हैं
पेड़
का सबसे हरा पत्ता अब डाली में नहीं है
और
सूरज ढल गया है।
ज़ख्म
नहीं भरा है
लेकिन
खून का एक थक्का जम गया है
कुछ
तस्वीरों और शब्दों ने भी
अपना-अपना
नया जगह चुन लिया है
पुकार
हवा में इतनी ज्यादा फैल गयी है
कि
जैसे खो गयी हो।
कोई
इतना बहरा हो गया है
कि
अपनी चीख़ भी नहीं सुन पा रहा।
मुझे
सब कुछ अज़ीब लग रहा है
क्योंकि
मैं अब तक
अपनी
जगह नहीं बदल पाया हूँ।
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