एक दीपक तुम जलाओ
एक दीपक हम जलाएँ।
दूर कर दें तिमिर
जग का आओ जग को जगमगाएँ।
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आज काले बादलों
ने आसमाँ को यूँ है घेरा
तारकों से सजा नभ
है चाँद है फिर भी अँधेरा
बनके तारे आओ
प्यारे नील नभ में झिलमिलाएँ
दूर कर दें तिमिर
जग का आओ जग को जगमगाएँ।
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शांति आखिर क्यों
धरा से दूर होती जा रही
मनुजता क्यों भीत
होकर गीत दुख के गा रही
विजय हो जिससे
अभय का गीत वैसे गुनगुनाएँ।
दूर कर दें तिमिर
जग का आओ जग को जगमगाएँ।
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हर निशा की हार
होगी हर किरण की जीत पर
शांति का फिर नृत्य होगा
सत्य के संगीत पर
कल्पना की अल्पना
में रंग भरकर घर सजाएँ
दूर कर दें तिमिर
जग का आओ जग को जगमगाएँ।
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